विनोद सिंह, नईदुनिया, जगदलपुर: सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की कमी किसी से छिपी नहीं है। सरकार हर वर्ष करोड़ों रुपये स्कूलों में सुविधाएं बढ़ाने पर खर्च करती है, लेकिन स्थिति में सुधार की कछुआ चाल बरकरार है। अपवाद के रूप में इक्का-दुक्का स्कूलों को अलग कर दिया जाए तो अधिसंख्यक स्कूलों की यही दशा और दिशा है।
बस्तर संभाग में जर्जर स्कूल भवन, एक-एक दो-दो कमरों में स्कूल संचालन की विवशता, खेल मैदानों का अभाव, कई स्कूलों में आहाता नहीं होने से स्कूल परिसर में बेरोकटोक मवेशियों की आवाजाही, टपकती छतें, झोपड़ी शालाएं और अधिक बारिश के समय अघोषित अवकाश, यह यहां की तस्वीर है।
कभी जर्जर स्कूल भवन का प्लास्टर गिरने लगता है, तो कहीं खुली खिड़कियों से बारिश की बौछार स्वागत करती है। कीड़े मकोड़ों का भय भी बना रहता है। ऐसा नहीं है कि यह दशा केवल ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों भर की है बल्कि जिला मुख्यालय जहां सभी बड़े जनप्रतिनिधि, विधायक, सांसद और प्रशासन के उच्चाधिकारी रहते हैं यहां भी कई स्कूल विशेषकर प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक शालाएं अभावों से जूझ रहे हैं।
पिछले दिनों राजस्थान में एक सरकारी स्कूल की छत गिरने से सात बच्चों की दर्दनाक मौत की घटना ने स्कूलों के रखरखाव पर सवाल खड़े कर दिए हैं। शहर में स्थित बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहा प्राथमिक शाला कंगोली एक उदाहरण मात्र है। यहां एक हॉल में बालवाड़ी और तीसरी से पांचवीं एक साथ संचालित हो रही है। पहली और दूसरी कक्षा प्रधान अध्यापक के जर्जर कक्ष में, जिसका ऑफिस के रूप में भी उपयोग किया जा रहा है। पांच कक्षाओं में 68 बच्चे दर्ज हैं। सभी गरीब परिवार के हैं।
हॉल में बालवाड़ी और तीन कक्षाएं लगती हैं, यहीं कक्ष दोपहर में भोजन अवकाश और शाम को खेल अवकाश के समय मैदान भी बन जाता है। स्कूल में खेल मैदान नहीं है। स्कूल परिसर में थोड़ी जगह है जहां बच्चे खेलते हैं लेकिन बारिश की स्थिति में कक्ष ही खेल मैदान के काम आता है। शौचालय की स्थिति भी खराब है।
स्कूल परिसर के अंदर तीन भवन है। एक हाल ही ठीकठाक दशा में है। एक अतिरिक्त कक्ष जिसका निर्माण कुछ वर्ष पहले किया गया था गुणवत्ताहीन निर्माण की भेट चढ़ चुका है। जर्जर होने से कक्षा लगाने के लिए इसका उपयोग नहीं किया जा रहा है क्योंकि इसे असुरक्षित घोषित किया जा चुका है। यह कक्ष मध्यान्ह भोजन बनाने के काम आ रहा है।
कक्षा पांचवीं की छात्रा देवकी नाग ने सरकार से स्कूल में अतिरिक्त कक्ष बनाने की मांग की है। उसका कहना है कि एक कमरे में तीन कक्षाएं लगाने से कैसे पढ़ाई होगी।
कक्षा पांचवीं की छात्रा पीहू कश्यप का कहना है कि एक कक्ष में बालवाड़ी और तीसरी, चौथी व पांचवीं कक्षा एक साथ संचालित है। होहल्ला में पढ़ाई प्रभावित होती है।
कक्षा चौथी के छात्र वैभवनाथ स्कूल में कमरों की कमी से परेशान है। उसका कहना है कि एक कक्षा के लिए एक कमरा होता तो पढ़ाई अच्छे से होती जो नहीं हो पा रही है।
अभिभावक सुखमन बघेल स्कूल की दशा से नाराज हैं। उनका कहना है कि सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले अधिकांश बच्चे गरीब परिवारों के हैं। निजी स्कूल की फीस नहीं भर सकते इसलिए माता-पिता सरकारी स्कूल में पढ़ाते हैं। यहां पर्याप्त कमरे नहीं है जो हैं उनमें एक को छोड़ बाकी जर्जर हैं। इस ओर ध्यान देने की जरूरत है। माता-पिता बड़ी उम्मीद से बच्चों को पढ़ने भेजते हैं।
अभिभावक किरण गोलदार का कहना है कि स्कूल में संसाधन की कमी को दूर किया जाना चाहिए। अधिकारी-नेता सब शहर में रहते हैं उन्हें इसकी सुध लेने की जरूरत है। प्राथमिक शाला कंगोली से सौ मीटर की दूरी पर सरस्वती शिशु मंदिर है। जहां प्राथमिक शाला के लिए छह कमरे और आधा दर्जन शिक्षक हैं। वहीं इस सरकारी स्कूल में एक कमरा और दो शिक्षिका हैं।
प्रधान अध्यापिका मंजूषा तिवारी दुखी मन से बताती हैं कि स्कूल में कमरों की कमी है। दो जर्जर हो चुके अतिरिक्ति कक्ष की मरम्मत करा दी जाती तो कक्षाएं लगाने के लिए जगह की कमी नहीं होगी। एक हॉल में बालवाड़ी और तीन कक्षाएं तथा कार्यालय कक्ष में दो कक्षाएं लगाई जा रही हैं।
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संयुक्त संचालक, शिक्षा बस्तर संभाग, राकेश पांडे ने बताया कि संभाग में एक-एक सरकारी स्कूल की सारी जानकारी एकत्र कर ली गई है। कहां किस चीज की कमी है इसका पूरा ब्यौरा है। संभाग में डेढ़ हजार से अधिक स्कूल भवन और अतिरिक्त कक्ष जर्जर है। रिपोर्ट शासन को भेजी गई है। सुधार कार्य भी शुरू कर दिया गया है।