
नईदुनिया प्रतिनिधि, जगदलपुर। माओवादी संगठन की केंद्रीय समिति द्वारा जारी पत्र में पोलित ब्यूरो सदस्य भूपति और केंद्रीय समिति सदस्य रूपेश को ‘गद्दार’ कहे जाने पर अब पुनर्वासित माओवादी रूपेश ने जवाब दिया है। रूपेश ने स्पष्ट कहा है कि हथियार छोड़ने और मुख्यधारा में लौटने का निर्णय भाकपा (माओवादी) महासचिव शीर्ष नेता बसवा राजू (बीआर दादा) ने लिया था और यह कोई व्यक्तिगत निर्णय नहीं था।
बसवा राजू ने मारे जाने से पहले 18 मई को पत्र में कहा था कि वास्तविक परिस्थितियों को देखते हुए पार्टी और आंदोलन को बचाने सशस्त्र संघर्ष का त्याग ही एकमात्र रास्ता है। उन्होंने इस विषय को केंद्रीय समिति की कोर बैठक में रखने की बात भी कही थी, लेकिन उससे पहले ही मुठभेड़ में मारे गए। रूपेश के अनुसार यह पत्र सभी केंद्रीय समिति सदस्यों के पास है और माओवादी साथियों को सच जानने के लिए उसे देखना चाहिए।
उन्होंने सवाल उठाया कि माओवादी सैन्य इकाई (सेंट्रल मिलिट्री कमीशन) के प्रमुख देवजी अब इस निर्णय को गलत ठहराकर भ्रम क्यों फैला रहे हैं। महासचिव बीआर दादा का महत्वपूर्ण अंतिम पत्र पोलित ब्यूरो सदस्य को भेजा था। सवाल यह है कि वह पत्र सभी सदस्यों को क्यों नहीं दिखाया जा रहा? सच्चाई यही है कि सशस्त्र संघर्ष को समाप्त कर मुख्यधारा में लौटना बीआर दादा की सोच और इच्छा थी।
रूपेश ने आगे कहा कि अप्रैल-मई 2024 में ही बसवा राजू ने इस दिशा में पहल शुरू कर दी थी। वे शांति वार्ता के जरिये वापसी के पक्ष में थे, लेकिन परिस्थितियां बदलने के कारण हथियार छोड़ना ही उचित निर्णय साबित हुआ। उन्होंने कहा कि इस निर्णय में देरी के कारण संगठन ने बीआर दादा जैसे कई साथियों को खो दिया। अब भी वक्त है कि कामरेड माओवादी सच्चाई को समझें और महासचिव के उस अंतिम निर्णय को जानें, जो संगठन को विनाश से बचाने के लिए लिया गया था।
रूपेश ने केंद्रीय समिति के ताजा पत्र को असत्य और दिशाहीन बताते हुए कहा कि मुझे गद्दार कहना न केवल अनुचित है बल्कि बीआर दादा की सोच और निर्णय का अपमान भी है। उन्होंने माओवादी संगठन के साथियों से अपील की कि वे भ्रमित न हों, अब समय सशस्त्र संघर्ष नहीं बल्कि समाज में शांति और पुनर्निर्माण के रास्ते पर लौटने का है।