विनोद सिंह, नईदुनिया जगदलपुर: महाकवि गोस्वामी तुलसीदास रचित पंक्ति ‘का वर्षा जब कृषि सुखानी’ अर्थात खेती सूखने के बाद बारिश का कोई महत्व नहीं होता, यहां शहर में स्थित शैक्षणिक परिसर हाटकचोरा पर लागू होता है। लगभग आधा एकड़ क्षेत्र में फैले इस परिसर में प्राथमिक, पूर्व माध्यमिक और हाई स्कूल संचालित है। तीनों ही विद्यालय अतिरिक्त कक्षों में संचालित हैं क्योंकि यहां के दो जर्जर हो चुके भवनों को ढहाकर नया हाई स्कूल भवन बनाया जा रहा है। दो वर्षाकाल बीत गए अभी तक भवन का निर्माण पूरा नहीं हुआ है।
शिक्षा विभाग के अधिकारियों को निर्माण एजेंसी लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों ने बताया है कि अभी दो से तीन माह नवीन भवन को तैयार कर सुपुर्द करने में लगेंगे। प्रशासन यदि गंभीरता दिखाता तो इस शैक्षणिक सत्र से नए भवन में स्कूल का संचालन शुरू हो सकता था पर ऐसा नहीं हो पाया। इस कारण दो वर्ष से दो पालियों में स्कूल का संचालन करना पड़ रहा है।
बता दें कि तीनों स्कूल में मिलाकर 195 बच्चे अध्ययनरत हैं। सुबह की पाली में प्राथमिक शाला और दोपहर की पाली में पूर्व माध्यमिक शाला और हाई स्कृल की कक्षाएं लगती हैं। अतिरिक्त कक्ष के छोटे-छोटे कमरों जिनकी स्थिति तंगहाल जैसी है, में कक्षाओं के संचालन में बड़ी परेशानी होती है। हाई स्कूल के विद्यार्थी कहते हैं कि हम दो वर्षो से भवन बनते हुए देख रहे हैं। नए भवन में कब कक्षाएं लगेगी यह अधिकारी ही जाने। बरसात में परेशानी उठाते हुए हम पढ़ाई कर रहे हैं।
स्वाभाविक है कि पढ़ाई प्रभावित तो होगी ही। 10वीं के विद्यार्थियों का कहना है कि ऐसा लगता है कि जब हम यहां से पास होकर हायर सेकंडरी स्कूल में चले जाएंगे तब नए भवन में स्कूल संचालन का मुहूर्त निकलेगा। एक अच्छी बात यह है कि यहां शिक्षकों की कमी नहीं है।
शासकीय प्राथमिक शाला जनपद हाटकचोरा 1957 में शुरू हुआ था। 68 वर्ष पुराने भवन की कई बार मरम्मत की जा चुकी है। वर्तमान में यह फिर जर्जर हो चुका है। इससे इस भवन में स्कूल का संचालन बंद कर पूर्व माध्यमिक शाला के अतिरिक्त कक्ष में पहली पाली में कक्षाएं लगाई जा रही हैं। भवन को तिरपाल से ढंककर बारिश से बचाने की जुगत की गई है। जगह की कमी के कारण भवन का उपयोग कार्यालय के लिए किया जा रहा है।
लगभग 100 वर्गफीट के कमरे में प्रयोगशाला संचालित है। जगह की कमी के कारण एक टेबल पर प्रयोगशाला के उपकरण और सामग्रियों को प्रदर्शित किया गया है। अधिकांश उपकरण आलमारियों में बंद हैं। प्रयोगशाला ऐसा है जहां एक साथ पांच-सात बच्चों से अधिक एकत्रित होकर प्रयोगात्मक गतिविधियां नहीं कर सकते।
शैक्षणिक परिसर में खेल मैदान नहीं होने से तीनों स्कूलों में खेल की घंटी नहीं बजती। खेल मैदान नही होने से बच्चे भी दुखी है। कक्षा 10वीं की छात्रा शायना बघेल का कहना है कि पढ़ाई के अलावा कभी कभार स्कूल के अंदर ही रचनात्मक गतिविधियां आयोजित की जाती हैं। खेलकूद दूर की बात हो चुकी है। शौचालयों की स्थिति और परिसर की साफ सफाई की व्यवस्था ठीक है।
स्कूल परिसर में मध्यान्ह भोजन तैयार करने के लिए कोई कक्ष नहीं है। जर्जर भवन के बाहर शेड के नीचे खुले में चूल्हे में मध्यान्ह भोजना पकाया जाता है। इस व्यवस्था का संचालन करने वाली श्यामा महिला बचत साख समिति द्वारा गैस चूल्हा के लिए सिलिंडर की व्यवस्था नहीं कर पाने से चूल्हा ही एकमात्र सहारा है। लकड़ी का उपयोग होने से परिसर में धुआं फैलता है जो बच्चों के लिए बीमारी को आमंत्रण देने जैसा है।
नया हाई स्कूल भवन जल्दी पूर्ण कर सौप दें ताकि हम वहां अच्छे से पढ़ाई कर सकें। अभी छोटे-छोटे कमरों में कक्षा का संचालन किया जा रहा है।- शायना बघेल, छात्रा कक्षा दसवीं
अतिरिक्त कक्ष में स्कूल के संचालन से मन में भय बना रहता है। हाई स्कूल के समान पूर्व माध्यमिक शाला के लिए भी नया भवना बनाना चाहिए।
- शांतनु नंदा, कक्ष छठवीं
स्कूल परिसर में जगह नहीं है इसलिए खेलकूद सीमित हो गया है। मैदान होता तो खेलने का अवसर मिलता। स्कूल में पढ़ाई के साथ खेल का भी मजा है।
- प्रतीक्षा दास, कक्षा छठवीं
छोटे परिसर में तीन स्कूलों के संचालन से परेशानी स्वाभाविक है। शासन-प्रशासन को संसाधन बढ़ाना चाहिए। जर्जर भवनों का जीर्णोद्धार भी जरूरी है।
- वसीम खान- अभिभावक
सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे गरीब व मध्यमवर्गीय परिवार के होते हैं। शासन सुविधाएं बढ़ाने पर करोड़ों रुपये खर्च करती है तो वह धरातल पर दिखना भी चाहिए।
- राहुल वैष्णव, अभिभावक।
नया भवन उम्मीद है दो-तीन माह में पूर्ण करके शाला संचालन के लिए सुपुर्द कर दिया जाएगा। नया भवन मिलने के बाद कई परेशानियां खत्म हो जाएंगी।
- अवध यादव, प्रभारी प्राचार्य