नईदुनिया प्रतिनिधि, जगदलपुर : सुप्रीम कोर्ट ने आदिवासी परिवारों में बेटियों को संपत्ति में समान हक देने का निर्णय सुनाया है, जिसका प्रदेश के आदिवासी समुदाय ने विरोध किया है। उनका तर्क है कि यह फैसला संविधान द्वारा दिए अधिकारों और आदिवासी परंपराओं के विपरीत है। इस निर्णय के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करने की योजना बनाई जा रही है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम सहित अन्य नेताओं ने इस फैसले पर असहमति जताई है। इस मुद्दे पर चर्चा के लिए झारखंड सहित देश के प्रमुख आदिवासी नेताओं की एक बैठक जल्द ही आयोजित की जा सकती है। नेताम ने कहा कि उन्होंने झारखंड के नेताओं से बातचीत की है। उनका मानना है कि कोर्ट का निर्णय कानूनी दृष्टि से सही हो सकता है, लेकिन यह समाज की प्राचीन परंपराओं के खिलाफ है।
उन्होंने कहा कि पुनर्विचार याचिका दायर की जाएगी, जिसमें समाज के रीति-रिवाजों को उचित तरीके से प्रस्तुत किया जाएगा। नेताम ने यह भी बताया कि कोर्ट के निर्णय ने समाज में चिंता का माहौल पैदा कर दिया है।
कोर्ट के निर्णय के अनुसार, आदिवासी परिवार की महिला को उसके परिवार की संपत्ति अपने भाइयों के समान हिस्सा देने से मना नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि संपत्ति में समानता का हक न देना लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा देगा और यह समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने आशंका जताई है कि इस निर्णय से आदिवासी समाज में संपत्ति हड़पने की नीयत से लव जिहाद के मामले बढ़ सकते हैं। उन्होंने नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय में अपने संबोधन में इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की थी।
सर्व आदिवासी समाज के नेताओं ने कहा कि कोर्ट के इस आदेश से आदिवासी समाज में विकट स्थिति उत्पन्न हो गई है। इस पर पूरे समाज में आक्रोश है। इस पर जल्द ही निर्णय लिया जाएगा।
पूर्व विधायक एवं सर्व आदिवासी समाज के प्रांतीय कार्यकारी अध्यक्ष राजाराम तोड़ेम का कहना है कि आदिवासी समाज में जमीन और पेड़ को देवी-देवता का दर्जा प्राप्त है। बहन बेटियों को जमीन में हिस्सेदारी न देने के पीछे मूल कारण है कि बेटियों के विवाह के बाद जमीन दिए जाने पर जमीन के साथ देवी-देवता भी दूसरे कुटुंब में चले जाएंगे। जो वह परिवार जमीन के साथ बहू कुल की देवी-देवता को स्वीकार नहीं करते हैं। कोर्ट के निर्णय से समाज में कलह उत्पन्न होगा।
सर्व आदिवासी समाज के जिलाअध्यक्ष दशरथ कश्यप ने कहा कि आदिवासी प्रकृति पूजक हैं और जमीन से उगी फसल का अन्न कुल देवी-देवता को अर्पित करते हैं। समाज में एक गोत्र के अंदर संतानों का विवाह नहीं होता है। बेटी दूसरे गोत्र में विवाह उपरांत जाती है। ऐसी स्थिति में जमीन में यदि उसे हक दिया गया तो हमारी आस्था और प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा बिगड़ जाएगी। कश्यप ने बताया कि बेटियों को जमीन का हक भले न दें। लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से यथोचित सहयोग किया जाता है।
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सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ की एक आदिवासी महिला से जुड़े प्रकरण में यह निर्णय दिया है कि किसी आदिवासी महिला को परिवार की पैतृक संपत्ति में उसके भाइयों के बराबर हिस्सा देने से इनकार नहीं किया जा सकता। यह न्यायोचित है और संपत्ति में बराबरी का हक नहीं देना लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा देगा और यह समानता के अधिकार का उल्लंघन भी है।