गुनेश्वर सहारे/नईदुनिया, बालाघाट। कहीं पर मंदिर हो। मंदिर में भगवान भी विराजित हों। बावजूद इसके भगवान के दर्शन साल में दस दिन ही मिलते हों- ऐसा सुनने में अजीब लगता है, लेकिन एंक मंदिर में ऐसा होता है। असल में यह मंदिर बालाघाट जिले के दक्षिण सामान्य वन मंडल में सोनेवानी कंजर्वेशन रिजर्व लालबर्रा के घने जंगलों के बीच स्थित है। यह क्षेत्र वन विभाग के आधीन है, जहां आम तौर पर आवाजाही प्रतिबंधित है। यहां बाघों के साम्राज्य में भगवान गणेश का पूर्व मुखी मंदिर हैं। यह मंदिर 14वीं शताब्दी का बताया जाता है।
जंगल में सफारी के दौरान भी पर्यटक इस मंदिर को बहुत दूर से दूर से देख पाते है। यहां बाघ, तेंदुआ, भालू, बायसन सहित अन्य वन्य प्राणियों की बहुतायत है। इसलिए सामान्य दिनों में लोगों को गणेश मंदिर के आसपास भी नहीं जाने की अनुमति नहीं होती। केवल दस दिवसीय गणेशोत्सव के दौरान ही इस मंदिर को आमजन जन के दर्शन के लिए खोला जाता है। मंदिर की प्राचीनता और दर्शन की सीमित उपलब्धता के चलते बालाघाट, सिवनी सहित आसपास के जिलों से लोग गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी के बीच दर्शन के लिए बड़ी संख्या में पहुंचते हैं।
मूषक सवार हैं गणपति: मंदिर में विराजित भगवान गणेश की प्रतिमा मूषक पर सवार है। इस देवालय को गणेश देव मंदिर के नाम से जाना जाता है। मंदिर में विराजित गणेश जी की प्रतिमा पांच फीट ऊंची है। जंगल में बड़ी संख्या में बाघ, तेंदुए होने की वजह से साल में केवल दस दिन ही मंदिर में दर्शन करने का अवसर प्राप्त होता हैं। ऐसी भी मान्यता है कि यहां विराजित गणेश प्रतिमा की ऊंचाई हर साल बढ़ रही है। यद्यपि इस बारे में कोई सत्यपरक जानकारी नहीं है।
एक बार हुआ था प्रतिमा को हटाने का प्रयास
बताया जाता है कि लगभग चार दशक पूर्व सिवनी जिले के आष्टा, चंदौरी के कुछ लोगों ने मूर्ति को हटाकर गांव में ले जाने की कोशिश की थी। तब वह ट्रैक्टर दो भागों के बंट गया था, जिसमें प्रतिमा को ले जाया जाना था। जबकि प्रतिमा अपने स्थान से टस से मस तक नहीं हो पाई थी। इसके अलावा भी उन लोगों के साथ अनेक अप्रत्याशित घटनाएं हुई थीं। इसके बाद किसी ने भी गणेश प्रतिमा को वहां से हटाने का प्रयास नहीं किया। इस जंगल में भगवान गणेश के अलावा शिवलिंग, तेल देवता, बड़ देवता और पवनसुत हनुमान का भी मंदिर है।
गणेश जी की प्रतिमा के समीप पहले पत्थर के सामने दो चक्रीय आकार वाले स्तंभ थे। पांढरवानी लालबर्रा के सरपंच अनीस खान के नेतृत्व में करीब 13 साल पूर्व मंदिर को बड़ा आकार प्रदान किया गया। अनीस खान ने बताया कि कव्हरगढ़ में जितनी प्रतिमाएं हैं, उनकी नक्कासी जंगल में विराजित गणेश जी की प्रतिमा से मिलती जुलती हैं। ऐसी भी किंवदंतियां हैं कि गणेश जी की प्रतिमा के नीचे एक किला दबा हुआ है।
गणेशोत्सव की अष्टमी पर मंदिर में हवन पूजन के साथ ही विशेष पूजा-अर्चना होती हैं। मंदिर में बालाघाट और सिवनी जिले के गांवों से लोग दस दिनों तक आते है। बताया जाता है कि वैसे तो इस जंगल में हिंसक वन्य प्राणी अधिक है और लोग जंगल में आने से डरते है, लेकिन गणेशोत्सव में यह डर लोगों के मन से दूर हट जाता हैं और भगवान की आराधना करने लोग एकजुट होकर मंदिर पहुंचते हैं।
सोनेवानी कंजर्वेशन रिजर्व के जंगल में गणेश मंदिर है। गणेशोत्सव में बालाघाट, सिवनी सहित अनेक जिलों के लोग पूजा-अर्चना करने दस दिनों तक आते हैं। जंगल होने की वजह से यहां आने वाले को आने-जाने के दौरान सतर्क रहने कहा गया है। - गौरव चौधरी, सीसीएफ, बालाघाट।
घने जंगल के अंदर पहाड़ी पर भगवान गणेश का मंदिर स्थित है। इस मंदिर में चौदहवीं शताब्दी की भगवान गणेश प्रतिमा स्थापित है, जो कि मूषक सवार है। इस मंदिर के जंगल के काफी अंदर होने की वजह से बहुत कम लोग इसके बारे जानते हैं।- डॉ. वीरेंद्र सिंह गहरवार, अध्यक्ष, इतिहास व पुरातत्व शोध संस्थान बालाघाट।