
नईदुनिया प्रतिनिधि, बालाघाट। ‘माओवादी गांव के बच्चों को उनके माता-पिता से छीन रहे हैं। अपने दलम के लिए वो ग्रामीणों से बच्चे मांगते हैं। मना करने पर जान से मारने की धमकी देते हैं, डराते हैं। तीन साल पहले माओवादी सुनीता को जबरदस्ती अपने साथ ले गए। हमने रोकने की कई कोशिश की, मिन्नतें कीं। सुनीता भी नहीं चाहती थी कि वह उनके साथ जाए...’ ये लाल आतंक का वो काला सच है, जिसे सुनीता के पिता बिसरू ओयाम, मां कुमली और चाची बुधरी ने उजागर किया है। परिजनों के ये खुलासे साबित करते हैं कि लाल आतंक डर, धमकी और अत्याचार की बुनियाद पर टिका है।
बालाघाट पुलिस के सामने सरेंडर करने वाली बीजापुर के गोमवेटा गांव की सुनीता के परिजनों ने मंगलवार को माओवादी अत्याचार की जो दास्तां बताई, वो लाल आतंक का दंश झेल रहे ग्रामीणों की बेबसी बताती है। परिजनों ने बताया कि माओवादी गांव के युवाओं को डरा-धमकाकर अपने साथ ले जाते हैं। उसमें सुनीता भी थी। दलम में उनके साथ अत्याचार होता है। प्रताड़नाएं मिलती हैं।
सुनीता के माता-पिता व चाची हिंदी बोलना नहीं जानते। उनकी पंचायत बर्रामेटा (बीजापुर) के सरपंच चन्नूराम पोड़ियाल ने भाषाई बाधा दूर की और परिजनों की भावनाएं हिंदी में बताईं। आत्मसमर्पण के बाद परिवार से पुनर्मिलन की खुशी सुनीता और उसके माता-पिता के चेहरे पर झलक रही है। बिसरू ने भावुक होकर गोंडी भाषा में कहा- बेटी के लौटने से परिवार बेहद खुश है। बेटी ने खुद को सुरक्षित हाथों में सौंपा है। हमारे साथ भी पुलिस ने अच्छा व्यवहार किया। खाने-पीने का ध्यान रखा। ‘बालाघाट पुलिस ता असलआत’ यानी बालाघाट पुलिस का धन्यवाद।
बिसरू ने कहा- (अनुवादक के अनुसार) मेरी दो बेटी और तीन बेटे हैं। तीन साल पहले सुनीता को माओवादी जबरन साथ ले गए। हम गिड़गिड़ाएं, लेकिन वो नहीं माने। उन्होंने जान से मारने की धमकी दी। कई बार बेटी से मिलना चाहा, लेकिन वो नहीं मिली। सुनीता ने भी कई बार हमसे मिलने की कोशिश की। एक-डेढ़ साल बाद माओवादी मेरी छोटी बेटी शबीला को भी साथ ले जाना चाहते थे, लेकिन हमने शबीला को नहीं भेजा। सुनीता की मां कुमली ने कहा- जब मेरी सुनीता को माओवादी जबरन ले गए, तब मैं उसे आखिरी बार भी नहीं देख पाई थी। उसने बालाघाट पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया है। पुलिस ने हमें फिर मिलाया है। अब बहुत खुश हूं।
सरपंच चन्नूराम ने बताया कि उनकी पंचायत समेत आसपास के कई गांवों के 100 से ज्यादा युवाओं को माओवादी जबरन डरा-धमकाकर साथ ले गए हैं। वहां जाकर उन्हें सिर्फ प्रताड़नाएं मिलती हैं। शारीरिक और मानसिक शोषण होता है। तंग आकर कई युवा वहां से भाग आए तो कुछ लापता हैं। छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में आत्मसर्पण करने वाले माओवादियों में उनके गांव के भी कई युवा हैं। माओवादियों का इतना खौफ है कि ग्रामीण पुलिस से इसकी शिकायत भी नहीं कर पाते।
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सुनीता ने अपने साथियों से अपील की है कि जो कैडर बालाघाट में अब भी संगठन के प्रभाव में रहकर हिंसा का रास्ता नहीं छोड़ रहा, वो तत्काल आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में लौटें। सुनीता ने सीसी सदस्य सोनू (भूपति), रूपेश समेत अन्य वरिष्ठ कैडर की बात मानकर सरेंडर करने का आग्रह किया है। पिता बिसरू ने भी माओवादियों से हाथ जोड़कर हिंसा का रास्ता छोड़ने और बालाघाट पुलिस के सामने हथियार डालकर मुख्य धारा में लौटने की अपील की है।