युवराज गुप्ता, बड़वानी। 'निमाड़ का पेरिस' कहलाने वाला बड़वानी अपने आप में इतिहास की कई सुनहरी यादें संजोए हुए हैं। यहां पर रियासतकालीन धरोहरें आज भी विद्यमान है, जो पूर्व के गौरवशाली इतिहास की गाथाओं को बयां कर रही हैं। इन्हीं में से एक रोचक गाथा यहां के पहले झंडावंदन की है।
15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिली तो आजादी के ठीक एक साल बाद पहले स्वतंत्रता दिवस पर 15 अगस्त 1948 को बड़वानी के प्राचीन स्थल झंडा चौक पर ऐतिहासिक झंडावंदन हुआ था। पुराने पोलो ग्राउंड पर ताेपों की सलामी दी गई थी।
बड़वानी के इतिहासविद् डॉ. शिवनारायण यादव और राज परिवार के निज सचिव शिवपालसिंह सिसोदिया के अनुसार, आजादी के बाद यहां का पहला झंडावंदन ऐतिहासिक रहा था। इसकी यादें उस समय की तस्वीरोंं में आज भी ताजा है। यहां पर तत्कालीन महाराज राणा देवीसिंहजी ने ध्वजारोहण किया था।
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दरअसल, एक वर्ष बाद बड़वानी रियासत का विलय मध्यभारत में हुआ था। कुछ ही लोगों को यह मालूम है कि आजादी के एक वर्ष बाद यहां पर झंडावंदन हुआ। इसके पीछे कारण यह है कि बड़वानी रियासत का मध्यभारत प्रांत में विलय 31 मई 1948 को हुआ था।
बड़वानी रियासत के तत्कालीन महाराजा राणा देवीसिंहजी ने वर्तमान के झंडा चौक पर ध्वजारोहण किया था। गजट का वाचन भी किया। साथ ही पुराने पोलो ग्राउंड पर तोपों से सलामी दी गई थी। वहीं यहां रात में देशभक्ति पर आधारित एक ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म का प्रदर्शन भी किया गया था। इससे जनता में देशभक्ति का संचार हुआ।
बड़वानी में रियासतकाल की सुंदर ऐतिहासिक इमारतें मौजूद हैं। इनमें इतिहास की गाथाएं छुपी हुई है। वहीं यहां का तीर गोला भी एक नायाब ऐतिहासिक स्थल है। इसी तरह मठ का स्कूल भवन भी लकड़ी से बना एकमात्र भव्य भवन है। यह करीब 200 साल पुराना है। प्राकृतिक वातावरण से परिपूर्ण सतपुड़ा की हरीभरी वादियों से आच्छादित यह शहर कभी निमाड़ में पेरिस की अनुभूति कराता था।