
राज्य ब्यूरो, भोपाल। वर्ष 2018 में शुरू हुई आयुष्मान भारत योजना सात वर्ष से अधिक की हो गई है। इस बीच कुछ बीमारियों के पैकेज के उपचार के खर्च में वृद्धि भी की गई। इस कारण कई परिवारों में लोगों का उपचार निर्धारित पांच लाख रुपये की सीमा में नहीं हो पा रहा है। उपचार के लिए इन्हें अपने जेब से राशि खर्च करनी पड़ रही है।
आयुष्मान भारत योजना के हितग्राहियों को मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान से भी राशि बंद कर दी गई है। ऐसे में अतिरिक्त खर्च आने पर यह सहायता भी उन्हें नहीं मिल पाती। लिवर ट्रांसप्लांट, किडनी ट्रांसप्लांट, और कैंसर जैसी कई बड़ी बीमारियों में एक ही व्यक्ति के उपचार में पांच लाख रुपये से अधिक खर्च हो जाते हैं। कुछ राज्यों ने अपनी तरफ से अतिरिक्त प्रीमियम देकर बीमा की राशि बढ़ाई है। गुजरात में दस लाख रुपये तक के उपचार की सुविधा है।
राजस्थान में मुख्यमंत्री आयुष्मान आरोग्य योजना को आयुष्मान भारत योजना के साथ जोड़ा गया है, जिसमें 25 लाख रुपये तक का कैशलेस इलाज मिलता है। कुछ राज्यों में आयुष्मान भारत योजना के अतिरिक्त उनकी अन्य योजना भी संचालित हो रही है, जिससे उन्हें दोनों का लाभ मिल जाता है।
बता दें कि इस योजना के अंतर्गत प्रीमियम में 60 प्रतिशत राशि केंद्र सरकार और 40 प्रतिशत राज्य सरकार मिलाती है। प्रीमियम एक हजार रुपये प्रति परिवार से बढ़कर दो हजार रुपये तक पहुंच गया है, पर केंद्र के हिस्से से अभी भी 600 रुपये ही मिल रहे हैं। इस कारण राज्य सरकार पर बोझ बढ़ा है, जिससे वह बीमा राशि नहीं बढ़ा रही है। अधिकारियों के अनुसार मध्य प्रदेश में अभी कोई प्रस्ताव नहीं है ना ही कोई परीक्षण किया गया है कि कितने लोगों को जेब से खर्च देना पड़ रहा है।
डॉ योगेश भरसट सीईओ, आयुष्मान भारत योजना मप्र ने कहा कि बीमा राशि बढ़ाने का अभी कोई प्रस्ताव नहीं है। यह परीक्षण करेंगे औसतन प्रतिवर्ष कितने परिवार होते हैं, जिनका खर्च निर्धारित पांच लाख रुपये से अधिक पहुंच रहा है। इसके बाद ही कुछ विचार किया जा सकता है।