
शशिकांत तिवारी, नईदुनिया, भोपाल। छिंदवाड़ा के विकास माडल की मध्य प्रदेश ही नहीं देशभर में चर्चा होती रही है। छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर लगभग 44 वर्ष तक कांग्रेस नेता व पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ या उनके परिवार के सदस्य सांसद रहे। वर्ष 2024 में भाजपा के विवेक बंटी साहू ने कमल नाथ परिवार का विजय रथ रोका। माना जाता रहा कि कमल नाथ की लगातार जीत क्षेत्र में विकास के चलते है पर सच्चाई यह है इसी छिंदवाड़ा के विकास की तस्वीर बहुत धुंधली है।
विषाक्त कोल्ड्रिफ कफ सीरप से छिंदवाड़ा के परासिया विकासखंड में 15 बच्चों की जान चली गई। यहां के सिविल अस्पताल में थ्री फेज बिजली कनेक्शन नहीं होने के कारण एक्स-रे मशीन एक वर्ष से डिब्बे से बाहर आने की प्रतीक्षा कर रही है। सोनोग्राफी मशीन भी खरीदी गई है लेकिन रेडियोलाजिस्ट नहीं होने के कारण ताले में ही बंद है।
मशीन का पंजीयन तक पीसी एवं पीएनडीटी एक्ट के अंतर्गत नहीं हो पाया है। अब थ्री फेज कनेक्शन के लिए परासिया से कांग्रेस विधायक सोहन वाल्मीकि ने दो लाख रुपये विधायक निधि से स्वीकृत किए हैं। अब कनेक्शन लेने की प्रक्रिया प्रारंभ होगी, पता नहीं कब मशीन चलेगी।
मध्य प्रदेश में बड़े -बड़े अस्पताल तो बन गए, पर छोटे जिलों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) से लेकर जिला अस्पताल तक और बड़े जिलों के ग्रामीण क्षेत्र के अस्पतालों का यही हाल है। छिंदवाड़ा में स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली की चर्चा देशभर में हो रही है। कारण, विषाक्त कफ सीरप से जिले के 22 बच्चों की जान चली गई है। यह प्रदेश भर के लिए एक कटु सच्चाई भी है।
किडनी फेल होने के कारण बच्चों को डायलिसिस तक की सुविधा नहीं मिल पाई, जबकि यहां सरकारी मेडिकल कालेज भी है। स्वजन बच्चों को लेकर एक से दूसरे अस्पताल में भटकते रहे। उनके चार लाख से 15 लाख रुपये तक खर्च हो गए। किसी को गहने गिरवी रखना पड़ा तो किसी को रोजी-रोटी के लिए खरीदा ऑटो बेचना पड़ा। सरकार, ने मृत बच्चों के स्वजन को चार-चार लाख रुपये आर्थिक सहायता जरूर दी, पर कुछ का इससे तीन गुना अधिक तक खर्च हो चुका है।
परासिया के सिविल अस्पताल में विशेषज्ञों के 12 स्वीकृत पदों में से मात्र दो डॉ. सुधांशु मानेकर व डा. गीतांजलि माथुर ही कार्यरत हैं। चिकित्सा अधिकारियों के सात पदों में से पांच रिक्त हैं। बच्चों को कोल्ड्रिफ लिखने वाले डॉ. प्रवीण सोनी भी इसी अस्पताल में विशेषज्ञ थे, पर अपने क्लीनिक में बच्चों के उपचार के दौरान कोल्ड्रिफ सीरप लिखी थी। अस्पताल में स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ नहीं होने के कारण सीजर डिलिवरी तक की सुविधा नहीं है।
कोल्ड्रिफ से छिंदवाड़ा, बैतूल और पांढुर्णा में 24 बच्चों की मौत के बाद स्वास्थ्य विभाग की लचर कार्यप्रणाली भी सामने आ गई है। इतनी बड़ी घटना के बाद भी स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग देख रहे उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल एक तो लगभग एक माह बाद छिंदवाड़ा पहुंचे, इसके बाद भी उन्होंने या विभाग के अधिकारियों ने यह जानने की कोशिश नहीं की जिले के अस्पतालों की हालत क्या है।
बड़े-बड़े अस्पताल भवनों में रोगियों को कौन-कौन सी सुविधाएं मिल रही हैं। नहीं मिल रहीं हैं तो क्यों? छिंदवाड़ा दौरे के बाद राजेंद्र शुक्ल ने भोपाल में भी बैठकें की, पर छिंदवाड़ा के अस्पतालों के संबंध में कोई बात नहीं हुई।
| पदनाम | स्वीकृत | कार्यरत |
| विशेषज्ञ | 5443 | 1497 |
| चिकित्सा अधिकारी | 6513 | 3824 |
छिंदवाड़ा ही नहीं सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञों के 70 पद रिक्त हैं। पीएससी से भर्ती की प्रक्रिया चल रही, पर जरूरत के अनुसार मिल ही नहीं पा रहे हैं। परासिया पहले सीएचसी था, जिसे अपग्रेड कर सिविल अस्पताल बनाया है। यहां सभी व्यवस्थाएं दुरुस्त की जा रही हैं। - संदीप यादव, प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा