नईदुनिया प्रतिनिधि, भोपाल। वेंटिलेशन पर रहने से एक व्यक्ति की श्वास नलिका सूजन की वजह से सिकुड़ गई थी। इसकी वजह से मरीज को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। गंभीर हालत में उन्हें एम्स भोपाल लाया गया था। यहां के विशेषज्ञों ने सिलिकॉन स्टेंट यानि सिलिकॉन से बना छल्ला डालकर सांस की नली के सिकुड़े हिस्से को खोल दिया। इससे मरीज को तुरंत राहत मिली और अब वे पूरी तरह ठीक हैं। बताया जा रहा है कि मध्य भारत के किसी अस्पताल में यह प्रयोग पहली बार हुआ है।
डॉक्टरों ने बताया कि सांस की नली में इस बीमारी को चिकित्सा जगत में ''पोस्ट इंटुबेशन ट्रेकियल स्टेनोसिस'' (पीआइटीएस) कहा जाता है। यह तब होती है जब किसी मरीज को लंबे समय तक वेंटिलेटर पर रखा जाता है। वेंटिलेटर सपोर्ट के दौरान मरीज की सांस की नली में रबर का ट्यूब (इंटुबेशन ट्यूब) डाला जाता है। ऐसी स्थिति में ट्यूब की वजह से श्वास नली की भीतरी दीवारों पर दबाव पड़ता है। इससे वहां सूजन, अल्सर या घाव हो सकता है, जो ठीक होने पर दाग बनाते हैं और इससे सांस की नली सिकुड़ जाती है।
सांस की ली सिकुड़ने से वायु मार्ग संकरा हो जाता है, जिसके कारण मरीज को सांस लेने में तकलीफ, घरघराहट, सांस फूलना, आवाज में बदलाव, बार-बार खांसी या बलगम और तेज चलने पर दम फूलने जैसी तकलीफ होती है।
बताया जा रहा है कि सांस लेने में 50 प्रतिशत से कम रुकावट की स्थिति में ब्रोंकोस्कोपिक डाइलेशन से श्वांस नली को थोड़ा चौड़ा किया जाता है। लेजर से दाग को हटा दिया जाता है अथवा दवाओं से सूजन कम किया जाता है। लेकिन गंभीर मामलों में सर्जरी कर श्वास नली से सूजन वाला हिस्सा काटकर स्वस्थ सिरों को जोड़ दिया जाता है। अभी तक यही सर्जरी होती रही है। पहली बार डॉक्टरों ने सिलिकॉन स्टेंट का प्रयोग कर श्वास नली को खोला है।
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