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नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। नगर निगम के जिम्मेदारों को सालभर ही पहले पता चल गया था कि चूहे शास्त्री ब्रिज को कुतर रहे हैं, लेकिन उन्होंने इसकी सुध लेना जरूरी नहीं समझा। वे इसे सामान्य घटना बताकर जिम्मेदारी से बचते रहे और इधर चूहों ने ब्रिज के एक बड़े हिस्से को खोखला कर दिया। समय रहते चूहों को नियंत्रित कर लिया जाता तो शास्त्री ब्रिज की ऐसी दुर्दशा नहीं होती।
रविवार सुबह जब ब्रिज की सड़क का एक हिस्सा धंसा तो जिम्मेदारों की नींद खुली। निरीक्षण के लिए इंजीनियरों की टीम बुलवाई गई। जांच में पता चला कि शास्त्री ब्रिज ही नहीं आसपास के करीब आधा किमी क्षेत्र में चूहों को आतंक है। चूहों ने शास्त्री ब्रिज के साथ-साथ गांधी प्रतिमा, रानी सराय तक की जमीन को अंदर ही अंदर खोखला कर दिया है। इसी का फायदा उठाकर शास्त्री ब्रिज के नीचे गुमटी लगाने वालों ने ब्रिज के नीचे की मिट्टी हटाकर 15-15 फीट गहरी दुकानें बना लीं थीं।
इन दुकानों से चूहों को खाने-पीने की चीजें मिलती रहीं और उन्होंने धीरे-धीरे ब्रिज ही नहीं आसपास के पूरे क्षेत्र में जगह-जगह दो-तीन फीट गहरे बिल बना लिए। अब इस पूरे क्षेत्र में पेस्ट कंट्रोल करवाया जाएगा। इस पर करीब 40 लाख रुपये खर्चा आएगा। यह हुआ था सालभर पहले लगभग एक वर्ष पहले शास्त्री ब्रिज के रेलवे स्टेशन की ओर बने एक हिस्से का फुटपाथ पूरी तरह से धंस गया था। जांच में पता चला था कि चूहों ने ब्रिज के इस हिस्से को खोखला कर दिया है।
उस वक्त नगर निगम ने फुटपाथ के नीचे मुरम भरवाकर रिपेयरिंग करवा दी थी। जिम्मेदारों का कहना था कि चूंकि ब्रिज पुराना हो गया है इसलिए ऐसी घटना हुई है। रविवार को ब्रिज की सड़क धंसने के बाद हुई जांच में यह बात सामने आई कि लगभग 30 साल से ब्रिज के नीचे के हिस्से में दो गुमटियां चल रही थीं। इन गुमटी वालों ने ब्रिज के नीचे की मिट्टी हटाकर गुमटियों को 15-15 फीट गहरा कर दुकानें बना ली थीं, लेकिन किसी जिम्मेदार ने इस तरह ध्यान ही नहीं दिया। हादसे के बाद जांच में यह बात सामने आने के बाद नगर निगम ने दुकानों को तोड़ दिया है।
नगर निगम अब शास्त्री ब्रिज के फुटपाथ की खोदाई कर इसे दोबारा बनाएगा। ब्रिज के नीचे जहां भी मिट्टी है वहां मिट्टी हटाकर पत्थर और सीमेंट का मिश्रण भरा जाएगा। इसके बाद आठ इंच से एक फीट मोटा स्लैब डाला जाएगा। पूरे क्षेत्र में कराना होगा पेस्ट कंट्रोल जिला प्रशासन और नगर निगम भले ही भिक्षुक मुक्त इंदौर का दावा करें लेकिन वास्तविकता यह है कि शास्त्री ब्रिज क्षेत्र में अब भी बड़ी संख्या में भिक्षुक और खानाबदोश लोग हैं। अन्य शहरों से आने वाले इन भिक्षुओं को खानेपीने की वस्तुएं दे देते हैं। कई लोग खानेपीने की वस्तुएं शास्त्री ब्रिज पर भी छोड़ जाते हैं।
शास्त्री ब्रिज से कुछ ही दूरी पर प्रदेश का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल एमवायएच है। पेस्ट कंट्रोल के नाम पर यहां हर साल करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं बावजूद इसके चूहों के आतंक का आलम यह है कि कुछ दिन पहले ही उन्होंने अस्पताल के पीडियाट्रिक आइसीयू में दो नवजात के अंगों को कुतर दिया था। घटना के बाद प्रदेश ही नहीं देशभर में इंदौर की छवि धूमिल हुई। जांच में यह बात सामने आई कि चूहों ने एमवायएच की बिल्डिंग को ही खोखला कर दिया है। अब शासन नई बिल्डिंग बनाने के प्रस्ताव पर विचार कर रहा है।
शास्त्री ब्रिज से चंद कदम की दूरी पर रेलवे स्टेशन है। यहां भी चूहों का जबरदस्त आतंक है। हालत यह है कि चूहों ने प्लेटफार्म को अंदर ही अंदर खोखला कर दिया है। यहां भी पेस्ट कंट्रोल के नाम पर अच्छी खासी राशि खर्च की जाती है बावजूद इसके हालात नियंत्रित नहीं हो रहे।
इंदौर के पुराने ब्रिजों में शामिल है। इसका निर्माण वर्ष 1950 में हुआ था। करीब एक करोड़ रुपये की लागत से तैयार इस ब्रिज का लोकार्पण 12 जनवरी 1953 को तत्कालीन परिवहन मंत्री लालबहादुर शास्त्री ने किया था। यह इंदौर का पहला दो लेन वाला ब्रिज था। इसकी लंबाई 448 मीटर और चौड़ाई 60 फीट के लगभग है। लगभग 30 वर्ष पहले गांधी हाल के सामने की तरफ इसकी चौड़ाई बढ़ाई गई थी।
रविवार सुबह करीब 10 बजे शास्त्री ब्रिज की गांधी हाल के सामने की सड़क अचानक धंस गई थी। सड़क पर पांच फीट गहरा और सात फीट चौड़ा गड्ढा बना गया था। नगर निगम की टीम ने तुरंत मौके पर पहुंचकर मलबा भरकर गड्ढा भर दिया। चूंकि हादसा अवकाश के दिन हुआ था इसलिए बड़ा हादसा टल गया।
यह बात सही है कि सालभर पहले भी ब्रिज के एक हिस्से में फुटपाथ धंसने की बात सामने आई थी। उस वक्त जांच में चूहों के आतंक की बात सामने आई थी, लेकिन फुटपाथ रिपेयर कर दिए गए थे। अब हम शास्त्री ब्रिज और आसपास के क्षेत्र में पेस्ट कंट्रोल करने के साथ ही ब्रिज के फुटपाथ को दोबारा बनाएंगे। इस पर करीब 40 लाख रुपये का खर्चा आएगा। काम जल्द ही शुरू हो जाएगा। - राजेंद्र राठौर, जनकार्य प्रभारी, नगर निगम, इंदौर