मुकेश विश्वकर्मा, नईदुनिया, भोपाल। मधुमेह से जंग अब थोड़ी और आसान हो सकती है। भोपाल के पंडित खुशीलाल शर्मा शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय के वैद्यों ने 50 से अधिक ऐसी वनस्पतियां खोज निकाली हैं, जिनमें मधुमेह को ठीक करने वाले तत्व हैं। खास बात यह है कि इनमें कई वनस्पतियां ऐसी हैं, जिनका जिक्र आयुर्वेद परंपरा के प्राचीन ग्रंथों में भी नहीं है। इनमें से अधिकांश वनस्पतियां हमारे आसपास ही मिल जाती हैं।
महाविद्यालय के दृव्यगुण विभाग की डॉ. अंजली जैन ने बताया कि नई खोजी गईं वनस्पतियों में मिट्टीवती, जारूल और दहीमन जैसे पौधे प्रमुख हैं। ये पौधे पहले भले ही ग्रामीण इलाकों में पारंपरिक इलाज में इस्तेमाल होते रहे हों, लेकिन वैज्ञानिक दृष्टि से इन पर अब तक कोई बड़ा काम नहीं हुआ था।
इन पौधों के औषधीय गुणों को प्रयोगशाला में परखा जा रहा है। इसके बाद इन्हें औषधीय परीक्षण के दौर से गुजरना होगा। डॉ. अंजली ने कहा कि यह शोध सिर्फ चिकित्सा जगत में नई दिशा नहीं देगा, बल्कि विदेशी औषधीय पौधों पर निर्भरता भी घटाएगा। इससे आयुर्वेदिक दवाओं की लागत कम होगी और मरीजों को सस्ती व असरदार दवाएं मिल सकेंगी।
जारूल : बैंगनी फूलों वाला सुंदर वृक्ष, गर्मी और बरसात में खिलता है। इसकी यां मधुमेह और सूजन में लाभकारी। शहरों में सजावटी पौधे के रूप में लोकप्रिय है।
मिट्टीवती : सूखी व दलदली जमीन में उगने वाला औषधीय पौधा। जड़ों का उपयोग त्वचा रोगों और बुखार में होता है। मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में भी सहायक।
दहीमन : दूधिया रस वाला छोटा पौधा, गांवों में बहुतायत पाया जाता है। पारंपरिक चिकित्सा में पत्तियां और तना दस्त, बुखार, त्वचा संक्रमण के इलाज में उपयोगी हैं। मिट्टी में नमी बनाए रखता है।
मधुमेह आज देश के सामने एक बड़ी स्वास्थ्य चुनौती है। अगर स्थानीय वनस्पतियों से कारगर और किफायती दवाएं बन सकें, तो इसका लाभ सिर्फ मरीजों को ही नहीं, बल्कि पूरे समाज को मिलेगा। इस पर शोध चल रहा है। - डॉ. उमेश शुक्ला, डीन, पं. खुशीलाल शर्मा आयुर्वेद महाविद्यालय, भोपाल