वीरेंद्र तिवारी. ग्वालियर(IND vs BAN 1st T20)। आज से ग्वालियर ने खेलों के गौरवमयी इतिहास की किताब फिर से लिखनी शुरू कर दी है। इस देश में क्रिकेट मैच भले ही कुछ प्राइवेट संस्थाओं और उस पर काबिज व्यक्तियों की विशुद्ध कमर्शियल गतिविधि हो लेकिन इसमें भी कोई दो राय नहीं कि इससे उस जगह की अर्थव्यवस्था भी चलायमान रहती है जहां यह फलता-फूलता है। दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करने वाले इंदौर की समृद्धि में क्रिकेट का अहम योगदान है।
मैंने वहां कालेज छात्र के रूप में नगर निगम के नेहरू स्टेडियम में अंतरराष्ट्रीय मैच को भी देखा है और भव्य उषा राजे क्रिकेट स्टेडियम के अंतरराष्ट्रीय मैच और आइपीएल भी कवर किए। मैच के दौरान शहर और सिस्टम की रगों में जो करंट दौड़ता है वही बदलाव की कहानी लिखता है। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के बहाने देश-विदेश के सैकड़ों लोग आपके शहर का दीदार करते हैं, खान-पान, कला, संस्कृति, इतिहास को जानते हैं। विभिन्न जगहों,सोशल-टीवी की चर्चाओं में शहर का जिक्र होता है।
इससे नाम चलने लगता है। बस यही चलता हुआ नाम निवेशकों की उस तलाश को पूरा करते हैं जिसे वह "इमर्जिंग मार्केट" कहते हैं। क्रिकेट के मामले में अब मध्यभारत का सबसे उम्दा स्टेडियम हमारे यहां है। जाहिर है इससे वह धड़ा बिल्कुल खुश नहीं जो हर गतिविधि पर पहला हक इंदौर का समझता है। अनमने ढंग से ही वह ग्वालियर के मैच को कराने में जुटे हैं। रही कसर यहां स्थानीय गुटबाजी पूरी कर रही है।
पिछले कुछ दिनों से यह अहसास होने लगा कि यह एक परिवार का प्राइवेट ईवेंट है जिसे वह हर हाल में सफल करवाना चाहते हैं। शहर और अंचल के राजनीतिक कद एक बार भी शहर की उन्नति से जुड़ी इस गतिविधि को लेकर न तो साथ बैठे न बात की।
नतीजा यह हुआ कि विवादों के बीच मेहमान टीम सिटी सेंटर के होटल में कैद रही और भारतीय टीम के खिलाड़ी भी शहर में नहीं निकले। उम्मीद की जानी चाहिए कि अब शहर को क्रिकेट मैच बीसीसीआइ के मैच सिस्टम से मिलते रहेंगे लेकिन सभी को मनोदशा बदलनी होगी, उन्हें जो इससे दूर हैं और उन्हें जो इस पर कब्जा जमाए रखना चाहते हैं तभी यह क्रिकेट धर्म और मैच शहर का उत्सव बनकर स्थानीय अर्थव्यवस्था के रनरेट को बेहतर करेगा।