
नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। दीपावली पर लापरवाही पूर्वक पटाखे जलाने और कार्बाइड गन के उपयोग से 50 से अधिक लोग घायल होकर एमवाय अस्पताल पहुंचे थे। इनमें शामिल कई बच्चों की आंखों में गंभीर चोट आई थी, जिनका इलाज जारी है। ऐसे ही दो मरीजों की आंखों की रोशनी बचाने के लिए एमवायएच के नेत्र विभाग में विशेष सर्जरी की गई। सर्जरी में चिकित्सकों ने शिशु की गर्भनाल की झिल्ली का उपयोग किया।
डॉक्टरों ने बताया कि मक्सी के ग्राम झोकर निवासी सोनू (19) और खंडवा जिले के मोजवाड़ी निवासी सुखदेव (15) दीपावली की रात कार्बाइड गन के धमाके की चपेट में आ गए थे। दोनों की आंखों में गंभीर चोट पहुंची है। मरीजों की स्थिति देखते हुए एमिनियोटिक मेमब्रेन ग्राफ्टिंग तकनीक से सर्जरी की गई।
घायलों के स्वजन ने बताया कि कार्बाइड गन चलाने के दौरान अचानक से तेज धमाका हुआ और आंख में चोट आ गई थी। सर्जरी के बाद उम्मीद है कि पहले की तरह आंखों की रोशनी लौटकर आ जाएगी।
विशेषज्ञों के मुताबिक, डिलीवरी के बाद नवजात के साथ गर्भनाल बाहर आ जाता है। नेत्र रोग विभाग की टीम इसे एमटीएच अस्पताल से एकत्र करती है। गर्भनाल की झिल्ली को आंख की क्षतिग्रस्त परत पर लगाया जाता है। झिल्ली की कोशिकाएं आंख की सतह को पुनर्जीवित करने में मदद करती हैं और संक्रमण का खतरा कम करती हैं।
इस पद्धति से पहले भी कई मरीजों की आंखों की रोशनी आ चुकी है। सोनू और सुखदेव को लेकर आने वाले दो से तीन सप्ताह में स्थिति स्पष्ट होगी। सर्जरी के बाद लगभग 17 दिन में गर्भनाल की झिल्ली से आंख की नेत्र सतह पुनर्जीवित हो जाती है।
विशेषज्ञों ने बताया कि एसिड अटैक व कारखानों में केमिकल दुर्घटनाओं के दौरान लोगों की आंखों की खो जाने वाली रोशनी को वापस लाया जा सकता है। इसके लिए जन्म लेने वाले शिशु की गर्भनाल की झिल्ली का उपयोग किया जा रहा है। विभाग द्वारा गर्भनाल की झिल्ली आंखों में लगाने की प्रक्रिया के संबंध में पिछले तीन साल से रिसर्च के साथ मरीजों का उपचार किया गया।
अब तक 100 से अधिक मरीजों को लाभ मिल चुका है। आंखों में एसिड या किसी प्रकार का केमिकल पहुंचने पर उसकी मेमब्रेन जल जाती है। इस पद्धति से एचओडी डॉ. प्रीति रावत के नेतृत्व में डॉ. श्वेता वालिया, डॉ. नीतू कोरी, डॉ. मनुश्री गौतम, डॉ. निहारिका आर्य उपचार कर रहे हैं।
कार्बाइड गन से घायल दो बच्चे आंखों में गंभीर चोट के साथ अस्पताल में इलाज करवाने के लिए पहुंचे थे। दोनों बच्चों का उपचार एमिनियोटिक मेमब्रेन ग्राफ्टिंग तकनीक से किया गया है, जिससे उनकी आंखों की रोशनी वापस लौट सकती है।- डॉ. प्रीति रावत, एचओडी