नईदुनिया प्रतिनिध, इंदौर। इंदौर में जितने भक्त पिता भगवान शिव के हैं, उससे कहीं अधिक पुत्र श्री गणेश के भी हैं। अभी कुछ दिनों पूर्व ही पिता शिवजी के प्रिय श्रावण मास में शिवजी की भक्ति के बाद अब उनके पुत्र गणेशजी की भक्ति का महापर्व गणेश चतुर्थी के रूप में आ गया है। शहर में आज से गणेशजी की घर-घर स्थापना के साथ ही दस दिवसीय गणेशोत्सव की शृंखला भी शुरू हो गई है। शहर के अनेक प्राचीन मंदिर भी ऐसे हैं, जो बरसों से भक्तों के लिए आराधना और साधना के केंद्र बने हुए हैं। इनमें से कुछ चुनिंदा मंदिरों का दिलचस्प विवरण नईदुनिया के पाठकों के लिए यहां प्रस्तुत है।
पश्चिम क्षेत्र में बड़े गणेशजी की स्थापना स्व. नारायण दाधीच ने 1901 में की थी। मूर्ति चरण से मुकुट तक 25 फीट ऊंची, 14 फीट चौड़ी और चार फीट ऊंची चौकी पर विराजमान है। पं. नारायण दाधीच जो गणेशजी अन्नय भक्त थे, उनको यह आकृति स्वप्न में दिखी थी। प्रतिमा निर्माण में चूना, गुड़, रेत, मैथीदाना, गोशाला की मिट्टी, हाथी खाना व घुड़शाला की मिट्टी, सोना, चांदी, लोहा आदि अष्ट धातु व नवरत्न एवं तीर्थ नदियों के जल से किया गया। तीन साल में विशालकाय मूर्ति का निर्माण हुआ था। साल में चार चतुर्थी को घी, सिंदूर और पन्नियों से चोला चढ़ाया जाता है।
मुख्य पुजारी पं. धनेश्वर दाधीच के अनुसार 10 दिनों तक रोजाना सुबह नौ से 11 बजे तक गणपति अथर्वशीष का पाठ होगा। रात नौ बजे आरती होगी। बुधवार को दोपहर 12 बजे 151 किलो शुद्ध देसी घी के लड्डुओं को भोग लगेगा, फिर जन्मोत्सव की आरती होगी। गणेशजी की प्रतिमा पर वर्ष में चार बार भाद्रपद सुदी चतुर्थी, कार्तिक बदी चतुर्थी, माघ वदी चतुर्थी एवं बैसाख बदी चतुर्थी पर चोला चढ़ाया जाता है। इस कार्य में सात दिनों का समय लगता है।
जूनी इंदौर स्थित पगड़ी और चिट्ठी वाले गणेशजी प्रसिद्ध हैं। यह 1200 वर्ष से ज्यादा प्राचीन मंदिर है। चार फीट लंबी और ढाई फीट चौड़ी परमारकालीन मूर्ति विराजित है। मूर्ति की दाईं तरफ सूंड एवं चार हाथ हैं। एक हाथ में लड्डू, दूसरा आशीर्वाद की मुद्रा, तीसरा में फरसा और चौथे में अंकुश है। बैठी हुई मूर्ति है, बायां पैर मुड़ा हुआ है। नीचे चूहा विराजमान है। गणेशजी की आंखें सुबह, दोपहर और शाम को अलग दिखाई देती हैं। मुख्य पुजारी मनोहरलाल पाठक के मुताबिक समय के साथ भक्तों के चिट्ठियों का चलन कम हो गया है। फिर भी रोज आठ से 10 चिट्ठियां आती हैं।
अब श्रद्धालु देश-विदेश से मोबाइल से बातकर भगवान गणेशजी के सामने अपनी समस्याएं रखते हैं। अपनी मनोकामनाएं श्रीगणेश को बताते हैं। मनोकामनाएं पूरी होने पर 56 भोग, हवन और चोला चढ़ाते हैं। इस मंदिर को तोड़ने के लिए औरंगजेब ने भी हमला किया था, भगवान का चमत्कार हुआ और औरंगजेब गर्भगृह पर सिर टेक कर वापस लौट गया। इस मंदिर में छत्रपति शिवाजी और उनके गुरु समर्थ रामदास महाराज भी आ चुके हैं। गणेशत्सव में 10 दिनों तक विशेष शृंगार, पूजा-अर्चना, हवन होगा। भक्तों की मनोकामना पूरी होने पर 56 भोग और चोला चढ़ाया जाता है। प्रत्येक बुधवार, गणेश चतुर्थी, पूर्णिमा, अमावस्या पर विशेष चोला चढ़ता है।
जूनी इंदौर स्थित चिंताहरण खड़े गणेशजी मंदिर 300 वर्ष प्राचीन हैं। प्रदेश में एक मात्र खड़े गणेशजी की मूर्ति है। इंदौर की स्थापना राव नंदलाल जमींदार (मंडलोई) द्वारा की गई थी। तब सबसे पहले खड़े गणेशजी की स्थापना की गई थी। काले पाषाण मूर्ति का निर्माण 15 वर्ष में पुष्य नक्षत्र में हुआ था। चांदी के आवरण वाले गर्भगृह में भक्त घरों में होने वाले मांगलिक कार्यों के लिए उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। मनोकामना की पूर्ति के लिए श्रद्धालु तीन से सात परिक्रमा लगाते हैं।
मुख्य पुजारी प्रतीक एवं तुषार पुराणिक के अनुसार पांच फीट की मूर्ति के चार हाथ हैं, एक हाथ में फरसा, दूसरे में अंकुश, तीसरे में लड्डू व चौथे में आशीर्वाद देती मुद्रा है। जिन युवक-युवतियों के मांगलिक कार्य नहीं होते हैं, उनके हल्दी की गांठ अर्पित करने से मनोकामनाएं पूरी होती है। दस दिनी जन्मोत्सव में प्रतिदिन विशेष शृंगार के बाद आरती होगी। फिर भक्तों को प्रसाद वितरण होगा। गणेशजी स्थापना के दूसरे दिन महाआरती का आयोजन किया जाएगा। खड़े गणेशजी के दर्शन करने से चिंता मुक्ति हो जाती है।
जूनी इंदौर स्थित पोटली वाले चिंतामण गणेशजी 500 वर्ष प्राचीन मंदिर है। मूर्ति की विशेषता है कि भगवान गणेश दाहिने हाथ में धन की पोटली लिए हुए बैठे हैं। मुख्य पुजारी गणेशप्रसाद पुराणिक के अनुसार यहां भक्तों द्वारा विवाह के लिए हल्दी की गांठ वितरण प्रत्येक गुरुवार को किया जाता है। किसी व्यक्ति के विवाह में बाधा आ रही है या अन्य कोई कार्यों में रुकावट आ रही है तो हल्दी के पूजन से उसके कार्य निर्विघ्न संपन्न हो जाते हैं।
इस हल्दी की गांठ का लाभ देश-विदेश के कई भक्तों को मिला है। गणेश की पुनः प्राण प्रतिष्ठा कर प्रतिमा की नवीन पीठिका और प्रभावेळी पर स्थापित किया जा रहा है। बुधवार को गणेशजी की प्राचीन मूर्ति को प्राण प्रतिष्ठित किया जाएगा। सुबह 11.30 से 12.30 बजे अभिजीत मुहूर्त में प्राण-प्रतिष्ठा होगी। इसके बाद प्रसाद वितरण होगा।