
नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। दुर्घटना क्लेम मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए बीमा कंपनी की अपील खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि बीमा कंपनियां दुर्घटना पीड़ितों को सिर्फ इसलिए मुआवजा देने से इंकार नहीं कर सकती कि जिस वाहन से दुर्घटना हुई थी वह गलत रूट पर चल रहा था या अपने निर्धारित रूट पर नहीं चल रहा था या स्वीकृत मार्ग से भटक गया था। कोर्ट ने कहा तकनीकी आधार पर मुआवजा देने से इंकार करना न्याय की भावना के विरुद्ध होगा।
कोर्ट ने यह टिप्पणी वाहन का बीमा करने वाली द न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और वाहन मालिक के नागेंद्र की ओर से प्रस्तुत अपीलों को निरस्त करते हुए की है। एडवोकेट राजेश खंडेलवाल ने बताया कि मामला एक बस दुर्घटना का है। यह बस अपने निर्धारित मार्ग से भटक कर दूसरे मार्ग पर चल रही थी इस दौरान दुर्घटनाग्रस्त हो गई। दुर्घटना में घायल लोगों ने मुआवजे के लिए बस का बीमा करने वाली कंपनी, वाहन मालिक और वाहन चालक के विरुद्ध क्लेम प्रकरण प्रस्तुत किए थे।
बीमा कंपनी ने कोर्ट में तर्क रखा कि बस निर्धारित रूट पर चलने के बजाय दूसरे रूट पर चल रही थी। यह बीमा शर्तों का उलंघन है इसलिए प्रकरण में उसे जिम्मेदारियों से मुक्त किया जाए। प्रकरणों का निराकरण करते हुए क्लेम ट्रिब्यूनल ने बीमा कंपनी को आदेश दिया था कि वह पीड़ितों को मुआवजे का भुगतान करे। बीमा कंपनी चाहे तो इस राशि को बाद में वाहन मालिक से वसूल सकती है।
इस फैसले के खिलाफ बीमा कंपनी और वाहन मालिक ने हाई कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन उन्हें वहां भी राहत नहीं मिली। इस पर दोनों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। अपील के दौरान भी बीमा कंपनी ने यही तर्क रखे कि बस अपने रूट से भटक गई थी और निर्धारित रूट पर नहीं चल रही थी।
बीमा शर्तों का उलंघन होने से बीमा कंपनी की जिम्मेदारी समाप्त हो जाती है। एडवोकेट खंडेलवाल ने बताया कि न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की युगलपीठ ने हाई कोर्ट के फैसले मेंं किसी भी तरह का बदलाव करने से इंकार करते हुए कहा कि रूट परमिट का उलंघन उसे दायित्व से मुक्त नहीं करता है।
बीमा पालिसी का उद्देश्य मालिक या संचालक को प्रत्यक्ष दायित्व से बचाना है। यह कहकर मुआवजा देने से इंकार करना कि दुर्घटना अनुज्ञा क्षेत्र से बाहर हुई है न्याय की भावना के विरुद्ध होगा। वाहन दुर्घटना में पीड़ितों की कोई गलती नहीं है। ऐसे में बीमा कंपनी को भुगतान करना ही चाहिए।