
नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर: इंदौर के शासकीय एमटीएच अस्पताल में एक रेप पीड़िता को अस्पताल प्रशासन की लापरवाही और नियमों की गलत व्याख्या के कारण गंभीर मानसिक और शारीरिक पीड़ा झेलनी पड़ी। पहले वह अपराध की शिकार हुई और फिर अस्पताल की अव्यवस्थाओं का सामना करना पड़ा। प्रसव के बाद अपने ही नवजात शिशु को पाने के लिए उसे पांच दिनों तक अस्पताल के चक्कर लगाने पड़े।
उदयनगर क्षेत्र की 28 वर्षीय महिला को 16 दिसंबर को प्रसव के लिए एमटीएच अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उसने एक स्वस्थ नवजात को जन्म दिया। सामान्य प्रक्रिया के अनुसार मां और बच्चे को प्रसव के बाद डिस्चार्ज किया जाता है, लेकिन इस मामले में अस्पताल के डॉक्टरों और स्टाफ ने बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) की अनुमति का हवाला देकर नवजात को देने से इंकार कर दिया।
पीड़िता और उसके स्वजन लगातार अस्पताल प्रशासन से गुहार लगाते रहे, लेकिन उन्हें हर बार यही कहा गया कि ऊपर से अनुमति आने के बाद ही बच्चा मिलेगा। इस दौरान महिला की हालत कमजोर होती चली गई। स्वजन ने बताया कि घटना का आरोपित जेल में है, इसके बावजूद अस्पताल की लापरवाही के कारण उन्हें भारी मानसिक तनाव झेलना पड़ा।
एमटीएच अस्पताल के एचओडी डॉ. नीलेश दलाल ने कहा कि उन्हें मामले की जानकारी नहीं थी और वे इसकी जांच कराएंगे। पांच दिनों तक भटकने के बाद स्वजनों ने स्वयं बाल कल्याण समिति से संपर्क किया। समिति ने स्पष्ट किया कि सीडब्ल्यूसी की अनुमति केवल नाबालिग प्रसूता के मामलों में आवश्यक होती है। चूंकि महिला 28 वर्ष की बालिग थी, इसलिए किसी अनुमति की जरूरत नहीं थी।
समिति के हस्तक्षेप के बाद नवजात को डिस्चार्ज कर दिया गया, लेकिन इसके बाद भी अस्पताल स्टाफ की लापरवाही सामने आई। महिला की भर्ती पर्ची गुम हो गई, जिसके कारण उसका डिस्चार्ज अटक गया। अंततः गुरुवार को महिला को अस्पताल से छुट्टी दी गई।
यह मामला शासकीय अस्पतालों में महिलाओं को बेहतर इलाज और संवेदनशील व्यवहार के दावों की पोल खोलता है। इससे पहले भी मार्च 2025 में पीसी सेठी और एमटीएच अस्पताल की अव्यवस्थाओं के कारण एक अन्य रेप पीड़िता को साढ़े पांच घंटे तक एमएलसी के लिए भटकना पड़ा था। फरवरी 2024 में नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता को भी मेडिकल जांच के लिए दो दिनों तक परेशान होना पड़ा था, जिस पर जांच समिति बनी थी, लेकिन लापरवाही पर ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी।