
सुरेंद्र दुबे, नईदुनिया.जबलपुर। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की मुख्यपीठ जबलपुर और खंडपीठ इंदौर व ग्वालियर में वर्तमान में कुल 42 जज पदस्थ हैं। चूंकि न्यायाधीशों के कुल स्वीकृत पद 53 हैं, अत: न्यायाधीशों के रिक्त पदों की संख्या 11 हो गई है। 2025 में एक साथ 11 जजों की नियुक्ति और दूसरे हाई कोर्ट से स्थानांतरित होकर आए जजों की वजह से जजों की कुल संख्या 44 हो गई थी, इस तरह महज नौ पद रिक्त रह गए थे।
लिहाजा, उम्मीद जाग गई थी कि शीघ्र ही शेष रिक्त पद भी भर लिए जाने से शत-प्रतिशत न्यायाधीशों की उपलब्धता सुनिश्चित हो जाएगी। किंतु ऐसा नहीं हुआ। अब स्थिति इसलिए भी चुनौतीपूर्ण हो गई है, क्योंकि 2026 में पांच हाई कोर्ट जज सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं।
ऐसे में जजों की कुल संख्या 42 से घटकर 37 और रिक्त पद बढ़कर 16 हो जाएंगे। ऐसे में यह आवश्यक हो गया है कि हाई कोर्ट कालेजियम द्वारा भेजे गए नामों पर अपेक्षाकृत शीघ्रता से स्वीकृति की मुहर लगे। साथ ही उच्च न्यायिक सेवा के पदोन्नति योग्य जजों के हाई कोर्ट जज बनने का पथ प्रशस्त किया जाए।
एमपी स्टेट बार काउंसिल के चेयरमैन राधेलाल गुप्ता ने चिंता जाहिर करते हुए बताया कि वे पूर्व में कई बार हाई कोर्ट जजों के सभी रिक्त पद भरे जाने की मांग उठा चुके हैं। इसे लेकर भारत के प्रधान न्यायाधीश व विधि मंत्रालय को पत्र भी भेज चुके हैं।
यही नहीं जजों के कुल स्वीकृत पद बढ़ाए जाने की आवश्यकता भी रेखांकित की जा चुकी है। हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष अधिवक्ता संजय वर्मा ने बताया कि 2013 में हाई कोर्ट में जजों के कुल स्वीकृत पद बढ़ाकर 53 किए गए थे। उसके बाद से अब तक लंबा समय बीत गया, किंतु जजों के कुल स्वीकृत पद 53 से अधिक नहीं हुए।
एमपी स्टेट बार के वाइस चेयरमैन आरके सिंह सेनी ने कहा कि लंबित मुकदमों के पहाड़ को देखते हुए ऐसा लगता है कि यदि हाई कोर्ट में कुल जज 70 से कम रहे तो सभी प्रकरण निराकृत करने में 50 वर्ष लग जाएंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि यदि एक जज एक माह में 275 प्रकरण भी निराकृत करेगा, तब भी वह पांच वर्ष में महज 470 ही प्रकरण अधिक से अधिक निराकृत कर पाएगा।