
नईदुनिया प्रनिनिधि, जबलपुर। मध्य प्रदेश में प्रमोशन में आरक्षण की नई नीति को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई हुई। मामले में याचिकाकर्ताओं की ओर से बहस पूरी कर ली गई। साथ ही सभी वर्गों के प्रतिनिधित्व का डाटा भी पेश किया गया है। जिसमें यह दावा किया गया कि आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों को अधिक प्रमोशन दिए गए हैं, इसलिए एससी व एसटी वर्ग के कर्मचारी ऊंचे पदों पर पदस्थ हैं। वहीं अनारक्षित वर्ग के कर्मचारियों को कम या देरी से प्रमोशन दिए गए, जिनके कारण नाम ग्रेडेशन लिस्ट में नीचे हैं।
याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि आरबी राय के प्रकरण में वर्ष 2016 में हाई कोर्ट ने कहा था कि वर्ष 2002 तक के सभी प्रमोशन निरस्त करें और नए सिरे से ग्रेडेशन लिस्ट जारी करें। इसके बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दिए थे।
मंगलवार को महाधिवक्ता प्रशांत सिंह की ओर से अनुरोध किया गया कि इस मामले की सुनवाई शीतकालीन अवकाश के बाद की जाए। वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि वीडियो कॉफ्रेंसिंग के जरिए बहस संभव नहीं है, इसलिए कोई अगली तारीख दे दी जाए। कोर्ट ने पूछा कि दलीलें पेश करने के लिए कितना समय लेंगे। इस पर वैद्यानाथन ने कहा कि करीब एक घंटे का समय लगेगा। मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा व न्यायमूर्ति विनय सराफ की युगलपीठ ने मामले की गंभीरता को देखते हुए मामले की सुनवाई 18 दिसंबर को निर्धारित कर दी।
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उल्लेखनीय है कि राजधानी भोपाल निवासी डॉ. स्वाति तिवारी सहित अन्य की ओर से दायर याचिकाओं में मध्य प्रदेश लोक सेवा पदोन्नति नियम 2025 को चुनौती दी गई है। दलील दी गई कि वर्ष 2002 के नियमों को हाई कोर्ट के द्वारा आरबी राय के केस में समाप्त किया जा चुका है। इसके विरुद्ध एमपी शासन ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट में मामला अभी लंबित है, इसके बावजूद एमपी शासन ने महज नाम मात्र का शाब्दिक परिवर्तन कर जस के तस नियम बना दिए, जो अनुचित है।