खून, खौफ और राजनीति, बाहुबली अनंत सिंह की दिल दहलाने वाली कहानी
बिहार की राजनीति में बाहुबल और प्रभाव का जब भी जिक्र होता है, मोकामा के पूर्व विधायक अनंत सिंह का नाम खुद-ब-खुद उभर आता है। 80 के दशक में जिस तरह अनंत सिंह और उनके कुनबे का वर्चस्व बाढ़-मोकामा की धरती पर फैला, वह बिहार की आपराधिक-सियासी कहानी का अहम अध्याय बन गया। 80 के दशक से लेकर 2000 तक, खून और सियासत के बीच अनंत सिंह का नाम बाढ़-मोकामा
Publish Date: Sun, 02 Nov 2025 11:29:10 AM (IST)
Updated Date: Sun, 02 Nov 2025 11:55:43 AM (IST)
दुलारचंद यादव की हत्या के आरोप में गिरफ्तार हुए अनंत सिंह।HighLights
- 80 के दशक में अनंत सिंह का वर्चस्व बाढ़-मोकामा में फैला
- बिहार की आपराधिक-सियासी कहानी का अहम अध्याय बन गया
- 2014 में पुटुस यादव हत्याकांड में अनंत हुए थे गिरफ्तार
बिहार की राजनीति में बाहुबल और प्रभाव का जब भी जिक्र होता है, मोकामा के पूर्व विधायक अनंत सिंह का नाम खुद-ब-खुद उभर आता है। 80 के दशक में जिस तरह अनंत सिंह और उनके कुनबे का वर्चस्व बाढ़-मोकामा की धरती पर फैला, वह बिहार की आपराधिक-सियासी कहानी का अहम अध्याय बन गया। 80 के दशक से लेकर 2000 तक, खून और सियासत के बीच अनंत सिंह का नाम बाढ़-मोकामा की मिट्टी में गूंजता रहा।
बड़े भाई का नाम भी पटना में खौफ का पर्याय था
राजनीति के मंच तक पहुंचने से पहले उनका सफर अपराध की गलियों से होकर गुज़रा। अनंत सिंह का आपराधिक सफर उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि से ही शुरू होता है। उनके बड़े भाई और पूर्व मंत्री दिलीप सिंह का नाम भी पटना और आसपास के इलाकों में खौफ का पर्याय था। उसी दौर में अनंत सिंह ने भी बाढ़ और मोकामा में अपनी दबंग पहचान कायम की।
खूनी अदावत की शुरुआत
80 के दशक में गांव के ही मुन्नी लाल सिंह से अनंत सिंह की दुश्मनी ने बाढ़ की धरती को वर्षों तक खून से रंगा। इस रंजिश में पहले अनंत सिंह के भाई विरंची सिंह की हत्या हुई, जिसके बाद दोनों गुटों के बीच हत्या और प्रतिहिंसा का सिलसिला लंबा चला। बेगूसराय के पास मुन्नी लाल सिंह की हत्या के बाद बाढ़ में अनंत सिंह कुनबे का आतंक इस कदर बढ़ गया कि उनके खिलाफ आवाज उठाना मौत को दावत देने के बराबर समझा जाने लगा।
मोकामा में महेश सिंह हत्याकांड
1985 में अनंत सिंह की दुश्मनी मोकामा के महेश सिंह से भी हुई। बताया जाता है कि उन्होंने रंगरूट नरेश सिंह के साथ मिलकर उसी साल मोकामा के जेपी चौक पर बम से महेश सिंह की हत्या कर दी। इसी दौर में दिलीप सिंह ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर विधानसभा चुनाव भी लड़ा, मगर कांग्रेस के श्याम सुंदर सिंह धीरज के हाथों हार का सामना करना पड़ा। हार के बाद दोनों भाइयों का दबदबा और आक्रामक हो गया।
राजपूत समाज से टकराव
नब्बे के दशक तक आते-आते बाढ़ के राजपूत समाज के साथ अनंत सिंह की खूनी जंग शुरू हो गई। दर्जनों हत्याओं के आरोप लगे और इलाक़े में उनके ख़िलाफ बोलने वाला कोई नहीं बचा। 1995 के चुनाव में बाढ़ विधान सभा क्षेत्र से अनंत सिंह के भाई सच्चिदानंद सिंह उर्फ फाजो सिंह मैदान में उतरे, लेकिन इस चुनाव में विजय कृष्ण की जीत हुई।
इस हार का ठीकरा अनंत सिंह ने विवेका पहलवान पर फोड़ा और दोनों के बीच खूनी संघर्ष शुरू हो गया, जिसने कई जिंदगियां निगल लीं। विवेका पहलवान को लदमा गांव छोड़ना पड़ा। इस जंग में अनंत सिंह के कई शूटर और रिश्तेदारों की मौत हुई।
क्रूरता की हदें और बढ़ती राजनीतिक ताकत
2000 के दशक में अनंत सिंह का आतंक अपने चरम पर था। एक मामले में उन्होंने कथित रूप से सूरजभान समर्थक बच्चू सिंह की हत्या कर सिर काटने तक की वारदात को अंजाम दिया। कई मामलों में तो पीड़ित पक्ष रिपोर्ट दर्ज कराने तक की हिम्मत नहीं जुटा सका। 2014 में बाढ़ के पुटुस यादव हत्याकांड में अनंत सिंह का नाम फिर सुर्खियों में आया और उन्हें गिरफ्तार भी किया गया।
सियासत और आपराधिक छवि का संगम
अनंत सिंह का सियासी सफर दो दशकों से अधिक लंबा रहा है, लेकिन उनका आपराधिक इतिहास उससे भी कहीं ज्यादा गहराई लिए हुए है। बेखौफ अंदाज, रौबीली आवाज और चुनौती भरा व्यक्तित्व यही पहचान है अनंत सिंह की। बिहार की राजनीति में वह एक ऐसे चरित्र बन चुके हैं, जहां सत्ता, सियासत और संगीन तीनों की लकीरें एक-दूसरे में घुलती-मिलती नजर आती हैं।