
धर्म डेस्क। रामायण का जब भी जिक्र होता है, रावण का नाम एक ऐसे चरित्र के रूप में उभरता है जो अदम्य शक्ति और अपार विद्वत्ता के बावजूद अहंकार की अग्नि में भस्म हो गया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि चारों वेदों का ज्ञाता और महान शिव भक्त होने के बाद भी रावण 'राक्षस' क्यों कहलाया? और वह भव्य सोने की लंका, जो उसकी पहचान बनी, वास्तव में उसकी थी ही नहीं?
आइए जानते हैं रावण के जन्म, उसके असुर बनने के पीछे की महत्वाकांक्षा और स्वर्ण लंका के असली उत्तराधिकारी की रोचक कहानी।
रावण के व्यक्तित्व का सबसे बड़ा विरोधाभास उसका जन्म है। वह कोई साधारण बालक नहीं था, बल्कि दो विपरीत विचारधाराओं का संगम था। उसके पिता महर्षि विश्रवा एक अत्यंत विद्वान ब्राह्मण और ऋषि पुलस्त्य के पुत्र थे। वहीं उसकी माता कैकसी एक असुर राजकुमारी थी।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, रावण को वेदों, शास्त्रों और संगीत (विशेषकर रावण हत्था और शिव तांडव स्तोत्र) का ज्ञान विरासत में मिला था। वह स्वभाव से एक ब्राह्मण था, लेकिन उसकी माता कैकसी ने उसे देवताओं को पराजित करने और असुरों का खोया हुआ गौरव वापस पाने के संकल्प के साथ पाला। रावण ने तपस्या से शक्तियां तो हासिल कीं, लेकिन संस्कारों में उसने असुरों के अहंकार और हिंसा को चुना। इसी कारण उच्च कुल का ब्राह्मण होने के बावजूद, अपने कर्मों और असुरों के नेतृत्व के कारण वह 'असुर राज' कहलाया।
लंका की भव्यता की चर्चा आज भी होती है, लेकिन इसके स्वामित्व का इतिहास काफी उलझा हुआ है। पद्म पुराण और अन्य कथाओं के अनुसार, लंका का सफर कुछ इस तरह रहा:
रावण की लंका पर नजर तब पड़ी जब वह अपनी शक्तियों के नशे में चूर था। अपने नाना सुमाली के उकसावे पर रावण ने अपने ही सौतेले भाई कुबेर पर हमला कर दिया। कुबेर शांतिप्रिय थे, उन्होंने युद्ध के बजाय लंका त्यागना बेहतर समझा। रावण ने बलपूर्वक सोने की लंका पर कब्जा कर लिया और कुबेर को वहां से निर्वासित कर दिया। इतना ही नहीं, उसने कुबेर का दिव्य 'पुष्पक विमान' भी छीन लिया, जो उस समय का सबसे आधुनिक और मन की गति से चलने वाला विमान माना जाता था।
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रावण की कहानी हमें सिखाती है कि ज्ञान और शक्ति तब तक ही आभूषण हैं जब तक उनके साथ विनम्रता हो। जैसे ही अहंकार का समावेश होता है, एक विद्वान ब्राह्मण भी 'असुर' की श्रेणी में खड़ा हो जाता है।
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