
धर्म डेस्क। रामायण की कथा में भगवान श्रीराम और रावण दोनों का ही अहम स्थान है। रावण भले ही अत्यंत शक्तिशाली और ज्ञानी राक्षस था, लेकिन अपने घमंड और पाप के कारण उसका विनाश निश्चित था।
जब रावण ने छल से माता सीता का हरण किया और उन्हें लंका के अशोक वाटिका में कैद किया, तब भी वह उन्हें छू तक नहीं पाया था। इसके पीछे एक रहस्यमयी कारण छिपा है, जो वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड में विस्तार से वर्णित है।
रामायण के अनुसार, जब भगवान श्रीराम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वनवास पर थे, तभी रावण ने छलपूर्वक माता सीता का हरण किया। वह उन्हें लंका ले आया और अशोक वाटिका में कैद कर दिया।
हालांकि, इतना सब करने के बावजूद रावण चाहकर भी माता सीता को स्पर्श नहीं कर सका। इसका कारण था एक भयंकर श्राप, जो उसे उसके ही अहंकार के चलते मिला था।
वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड (अध्याय 26, श्लोक 39) में रावण को मिले इस श्राप का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि एक बार रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। भगवान शिव ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि वह अत्यंत बलशाली बनेगा। वरदान मिलने के बाद रावण का अहंकार और बढ़ गया।
एक बार स्वर्ग की अप्सरा रंभा, अपने होने वाले पति नलकुबेर (कुबेर के पुत्र) से मिलने जा रही थी। रास्ते में उसकी भेंट रावण से हुई। रंभा की सुंदरता देखकर रावण उस पर मोहित हो गया और उसके साथ दुराचार करने की कोशिश की।
रंभा ने रावण को समझाया कि वह उसके भाई कुबेर की पुत्रवधू के समान है, लेकिन रावण ने उसकी बात अनसुनी कर दी। जब नलकुबेर को इस घटना का पता चला, तो उसने रावण को भयंकर श्राप दिया कि यदि तू किसी स्त्री को उसकी इच्छा के विरुद्ध छुएगा, तो तेरे मस्तक के सौ टुकड़े हो जाएंगे। इसी श्राप की वजह से नहीं छू पाया था माता सीता को रावण
नलकुबेर के इस श्राप के कारण रावण किसी भी स्त्री को उसकी इच्छा के बिना स्पर्श नहीं कर सकता था। यही वजह थी कि माता सीता को लंका में कैद रखने के बावजूद वह उन्हें छू नहीं पाया।