नईदुनिया प्रतिनिधि,ग्वालियर। भगवान श्रीकृष्ण के अग्रज बलरामजी के अवतरण से दो दिन पहले भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को बलदाऊ का जन्म हुआ थे। इस उपलक्ष्य में हल षष्ठी 14 अगस्त गुरुवार को मनाई जायेगी। इस दिन माताएं संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए व्रत करेंगीं। इस षष्ठी को हलषष्ठी के रूप में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि अंचल भी ब्रजमंडल का हिस्सा है। इसलिए बालदाऊ का जन्मोत्सव भी श्रद्धाभाव के भाव के साथ मनाया जाया है। हलधर के जन्मोत्सव मनाने के लिए यादव समाज व्यापक स्तर पर तैयारी कर रहा है। कृषि विश्विद्यालय के ठेंगड़ी सभागार में उत्कृष्ठ किसानों का भी सम्मान किया जाएगा।
ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया की हिंदू धर्म में हरछठ व्रत का विशेष महत्व है। इसे हलछठ, ललही छठ या रांधण छठ भी कहा जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और उनके बड़े भाई भगवान बलराम की पूजा की जाती है। इस दिन बलरामजी का जन्मदिवस मनाया जाता है। उनकी पूजा होती है, जिन्हें हलधर कहते हैं क्योंकि उनका मुख्य शस्त्र हल था। माताएं इस व्रत को अपनी संतान की लंबी उम्र, सुख और समृद्धि के लिए रखती हैं। इस दिन जुताई से उत्पन्न किया गया कोई अन्न व्रत रखने वाले को नहीं खाना चाहिए।
हिंदू पंचांग के अनुसार, षष्ठी तिथि 14 अगस्त को सुबह चार बजकर 23 मिनट पर प्रारंभ होगी और 15 अगस्त को सुबह दो बजकर साच मिनट पर समाप्त होगी। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल हरछठ का व्रत 14 अगस्त को है। हरछठ व्रत भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव यानी जन्माष्टमी से पहले रखा जाता है।
हलषष्ठी व्रत संतान की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सुख के लिए बहुत खास है। मान्यता है कि बलरामजी, जो शेषनाग के अवतार हैं, शक्ति और धर्म के प्रतीक हैं। इस व्रत को रखने से बच्चों को बीमारी, डर और बुराइयों से सुरक्षा मिलती है। उन्हें संतान नहीं है, उनके लिए यह व्रत फलदायी हो सकता है। परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है।